शाम के व़क्त
सूरज के कदम
हौले-हौले से
जब लौटने लगें,
अपनी किसी
धुन में डूबे हुए
साये से बने
पंछियों के कारवाँ
नीड़ों के रुख
जब करने लगें,
शोख लहरें
अँधेरे की ओट ले
बिना आहट
सागर की बाहों में
मचलकर
जब समाने लगें,
चंचल भौंरे
फूलों में छिपकर
बन्द होने का
बहुत बेसब्री से
यूँ इंतज़ार
जब करने लगें,
डगर पर
आहट के कदम
कुछ कम से
जब पड़ने लगें,
हाथों में लिये
चमकते सितारे
जुगनू जब
करीब आने लगें,
जलती लौ से
वो पिंघलती हुईं
मोमबत्तियाँ
जाने-पहचाने से
गीले-गीले से
अक्स बनाने लगें,
दरवाजों के
समान दिशाओं में
दोनों ही पट
जब समाने लगें,
दूर कहीं पे
बतियाते फिरते
झींगुरों की भी
मधुरिम बतियाँ
जब सबको
सुनाई देने लगें,
उस समय
तुम मिलने आना
पेड़ों के साये
लहराते हुए यूँ
ले लेंगे हमें
आगोश में अपनी
कोई न हमें
पहचान पायेगा
बरसों बाद
वो अधूरा मिलन
प्यार से भरी
कहानियाँ मन की
लिखकर जायेगा ।
डॉ० भावना कुँअर
सूरज के कदम
हौले-हौले से
जब लौटने लगें,
अपनी किसी
धुन में डूबे हुए
साये से बने
पंछियों के कारवाँ
नीड़ों के रुख
जब करने लगें,
शोख लहरें
अँधेरे की ओट ले
बिना आहट
सागर की बाहों में
मचलकर
जब समाने लगें,
चंचल भौंरे
फूलों में छिपकर
बन्द होने का
बहुत बेसब्री से
यूँ इंतज़ार
जब करने लगें,
डगर पर
आहट के कदम
कुछ कम से
जब पड़ने लगें,
हाथों में लिये
चमकते सितारे
जुगनू जब
करीब आने लगें,
जलती लौ से
वो पिंघलती हुईं
मोमबत्तियाँ
जाने-पहचाने से
गीले-गीले से
अक्स बनाने लगें,
दरवाजों के
समान दिशाओं में
दोनों ही पट
जब समाने लगें,
दूर कहीं पे
बतियाते फिरते
झींगुरों की भी
मधुरिम बतियाँ
जब सबको
सुनाई देने लगें,
उस समय
तुम मिलने आना
पेड़ों के साये
लहराते हुए यूँ
ले लेंगे हमें
आगोश में अपनी
कोई न हमें
पहचान पायेगा
बरसों बाद
वो अधूरा मिलन
प्यार से भरी
कहानियाँ मन की
लिखकर जायेगा ।
डॉ० भावना कुँअर
Bhawna