17 दिसंबर 2011
16 दिसंबर 2011
9 दिसंबर 2011
चलिए आज कुछ दर्द की बात हो जाए -"एक साया"
अभी भरे भी नहीं थे
पुराने जख़्म...
कि नयों ने बना लिया रस्ता
हम सोचकर यही
छिपाते रहे उनको
कि सह लेंगे चुपचाप...
रातभर
सिसकियों को दबाकर
जख़्मों को
मरहम लगाने का
उपाय करते रहे
न जाने कब
एक सिसकी
बाहर तक जा पहुँची
और फिर
जो तूफ़ान आया
उसका अंदाज भी नहीं था
मिट गए सभी जख्म
और बन्द हो गईं सिसकियाँ
सदा के लिए
कभी-कभी एक साया सा
दिखता है कमरे की खिड़की से
पर अन्दर देखो तो
अंधकार के सिवा कुछ नहीं
एक धुँआ उठता है
अमावस की रात में
पर दरवाजा खोलो तो कुछ नहीं
लोग कहते हैं कि
यहाँ भटकती है
रूह किसी की...
आवाज़ आती है
उसकी कराहट की...
पर अब
सिसकियाँ नहीं आती ...
Bhawna
8 दिसंबर 2011
हाइकु मुक्तक
सरस्वती सुमन का अक्तुबर -दिसम्बर अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ के रूप मेंअब तक प्रकाशित किसी भी पत्रिका का सबसे बड़ा विशेषांक है । इसमें भारत और देशान्तर के लगभग 300 रचनाकर सम्मिलित किए गए हैं।इस अंक में 6 साहित्यकारों के हाइकु मुक्तक भी दिए गए हैं; जिनमें , भावना कुँअर ,डॉ हरदीप सन्धु आस्ट्रेलिया से, रचना श्रीवास्तव , संयुक्त राज्य अमेरिका से और तीन भारत से हैं। डॉ0 भावना कुँअर का हाइकु मुक्तक यहाँ दिए जा रहा है-
प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
डॉ0 भावना कुँअर
फूल खिलता/ कुछ भी न कहता / गुनगुनाता
धूप सहता / कभी मौन रहता / है मुस्कुराता
भ्रमर आते/ रसपान करते/ डंक चुभाते
खुशबू देता/ जरा न कतराता/ तोड़ा ही जाता।
-0-
23 नवंबर 2011
16 नवंबर 2011
सपनों का रंगीन धागा...
बीते वक्त की चादर से
चुरा लिया मैंने एक
सपनों का रंगीन
रेशमी धागा...
और फिर उससे
नये वक्त की पैबंद लगी,
बिखरी-छितरी,टूटी-फटी
चादर को
एक बार फिर से
करने लगी प्रयास
पुराने वक्त की चादर समान
बुनने का ...
जिसमें बहता था
अथाह प्यार का सागर...
जो टिका था
सच्चे सपनों की बुनियाद पर...
और जिसमें
भावों की पवित्र गंगा में
तैरती थी
समर्पण की नाव...
और उस नाव का खिवैया था
सच्चा और पवित्र प्यार...
Bhawna
31 अक्तूबर 2011
25 अक्तूबर 2011
23 अक्तूबर 2011
14 अक्तूबर 2011
26 सितंबर 2011
19 सितंबर 2011
6 सितंबर 2011
'द सन्डे- इन्डियन 'ने कहा - सात समंदर पार, हिंदी की अलमबरदार...
'द सन्डे- इन्डियन ' वीकली में वर्ष २०११ की सर्वश्रेष्ठ महिला लेखिकाओं का चयन किया गया जिसमें लगभग ५०० प्रतिभागी थे और १११ को चुना गया उनमें सौभाग्य से मुझे भी स्थान मिला जो वास्तव में मेरे लिए बहुत खुशी की बात है और ये खुशी मैं अपने प्रिय मित्रों के बिना कैसे मना सकती हूँ तो लीजिए ये केक खाईये और अपना स्नेह मुझे दीजिए
इसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं...
http://thesundayindian.com/hi/story/indian-women-writers-in-abroad/7/7336/
आज
बहुत दिनों बाद...
थककर
गहरी नींद
सोई है पीड़ा...
शायद !
अब कभी
न उठने के लिए...
Bhawna
इसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं...
http://thesundayindian.com/hi/story/indian-women-writers-in-abroad/7/7336/
आज
बहुत दिनों बाद...
थककर
गहरी नींद
सोई है पीड़ा...
शायद !
अब कभी
न उठने के लिए...
Bhawna
1 सितंबर 2011
मेरा जिगरी दोस्त
मेरे सबसे करीब
मेरा जिगरी दोस्त
अँधेरा...
अक्सर मेरे पास
आता है
और
छिपकर बैठ जाता है
मेरे मन के एकल कोने में...
घण्टों मुझसे बातें करता है
अकेले में
जब कोई नहीं होता...
सुबह से शाम
कैसे होती है
पता ही नहीं चलता...
और फिर अचानक...
आहट सुन
संध्या की आहट सुन
दूर कहीं छिप जाता है
झाडियों के पीछे...
और इंतज़ार करता है
सुबह होने का
फिर...
चिड़ियों की चहचहाट सुन
दौड़कर आता है
और खोज़ता है
मेरे मन का वही कोना
छिपकर बैठ जाने के लिए...
Bhawna
22 अगस्त 2011
यादों के सहारे ...
9 अगस्त २००6 को मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था और मेरी सबसे पहली पोस्ट रक्षा बंधन थी, पूरे 5 साल हो गए हैं ये सफर अभी भी जारी है कब तक रहेगा नहीं पता, बहुत सी अड़चनें आईं कभी रूका, कभी धीमा हुआ मगर फिर मित्रों का स्नेह उनका अपनापन इस सफर को पूरा करने लिये मिला बस फिर क्या फिर से धीमी गति से ही सही निकल पड़े हैं मंजिल की तलाश में थोड़ा देर हो गई सेलीब्रेशन में... अगस्त में हालात कुछ अजीब से हो जाते हैं मिले जुले भावों से घिरी मैं प्रयास करती हूँ कि उन यादों से बाहर निकलूँ जो दिल को झंझोड कर रख देती हैं पर ऐसा हो नहीं पाता एक मासूम आते-आते रह गया थाअगस्त महीने में जो आज १३ साल का होता... जिसका नाम भी दे चुके थे नाम था ईषाण बस डॉ० की लापरवाही उसको बचा नहीं पाई वरना वो भी इस संसार को देख पाता ...मेरी ये रचना मेरे बेटे ईषाण को समर्पित है जो कभी भी मेरी यादों से, दिल दे दूर नहीं हो सकता ये रचना पहले भी बलॉग पर दी जा चुकी है...
कल जब वो
मेरी गोद में आया,
बहुत मासूम !
बहुत कोमल !
इस संग दिल दुनिया से
अछूता सा,
शान्त!
बिल्कुल शान्त !
ना कोई धड़कन
ना ही कोई हलचल।
मेरा सलौना,
मेरा नन्हा,
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
नहीं भूल पाती
उसका मासूम चेहरा,
नहीं भूल पाती
उसका स्पर्श।
बस जी रहीं हूँ
उसकी यादों के सहारे।
देखती हूँ
हर रात उसका चेहरा
टिमटिमाते तारों के बीच
और जब भी कोई तारा
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
लगता है मेरा नन्हा
लौट आया है
तारा बनकर
और कहता है-
"मत रो माँ मैं यहीं हूँ
तुम्हारे सामने
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
यूँ ही रोते हुये
मेरा दिल दुखता है माँ
तुम्हें यूँ देखकर
मैं तो आना चाहता था,
किन्तु नहीं आने दिया
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
इस दुनिया से,
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
मैं यहाँ खुश हूँ
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
अब कभी भी
ये मिलन हमारा…
मेरी गोद में आया,
बहुत मासूम !
बहुत कोमल !
इस संग दिल दुनिया से
अछूता सा,
शान्त!
बिल्कुल शान्त !
ना कोई धड़कन
ना ही कोई हलचल।
मेरा सलौना,
मेरा नन्हा,
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
नहीं भूल पाती
उसका मासूम चेहरा,
नहीं भूल पाती
उसका स्पर्श।
बस जी रहीं हूँ
उसकी यादों के सहारे।
देखती हूँ
हर रात उसका चेहरा
टिमटिमाते तारों के बीच
और जब भी कोई तारा
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
लगता है मेरा नन्हा
लौट आया है
तारा बनकर
और कहता है-
"मत रो माँ मैं यहीं हूँ
तुम्हारे सामने
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
यूँ ही रोते हुये
मेरा दिल दुखता है माँ
तुम्हें यूँ देखकर
मैं तो आना चाहता था,
किन्तु नहीं आने दिया
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
इस दुनिया से,
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
मैं यहाँ खुश हूँ
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
अब कभी भी
ये मिलन हमारा…
Bhawna
14 अगस्त 2011
13 अगस्त 2011
8 अगस्त 2011
मित्रता दिवस पर मेरी ओर से सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ
1.
अकेलापन
खलता नहीं अब
मित्र जो संग।
2.
विश्वास डोर
बाँधे सच्ची मित्रता
चारों ही ओर।
3.
छोड़े न हाथ
दुख हो चाहे सुख
मित्र का साथ।
4.
खुशबू बन
बिखरे चहुँ ओर
ये मित्रगण।
5.
ज्यूँ मित्र मिले
मन-उपवन में
फूल से खिले।
6.
बस था साथ
दुख की डगर में
दोस्त का हाथ।
7.
मन के दीए
जब मित्रों ने छुए
रोशन हुए।
8.
स्वर्ग आभास
टूटती साँसों संग
मित्र हो पास।
9.
साँसों में बसी
मित्रता की सुगंध
पनपे छंद।
10.
हाथ है तंग
रिश्ते नाते अपंग
है मित्र संग।
Bhawna
1 अगस्त 2011
19 जुलाई 2011
"माँ का दर्द...
क्या लिखूँ?
समझ नहीं आता
कलम है जो रूक-रूक जाती है...
और आँसू
जो थमने का नाम ही नहीं लेते...
एक हूक सी
मन में उठती है...
और आँसुओं का सैलाब फैलाकर
सिमट जाती है
अपने दायरे में...
नश्तर चुभोती है
और दर्द को दुगना कर
छिपकर एक कोने में बैठ जाती है
अगली बार उठने के लिए...
क्या दर्द की ये लहर
नहीं झिंझोड़ देती
हर माँ का अस्तित्व?
जिनकी नन्हीं जान
दूर हो जाती है उनके कलेजे से...
क्या अनचाहा दर्द
बन नहीं जाता माँ की तकदीर?
क्या जीना मुहाल नहीं हो जाता?
और क्या उसका सपना
आँखों को धुँधला नहीं कर जाता?
कैसे रहती है वो जिंदा
बस वही जानती है...
लोगों का क्या
वो तो सांत्वना देकर
चले जाते हैं अपनी राह...
पर माँ अकेली एकदम तन्हाँ
किसी उम्मीद के सहारे
बिना किसी से कुछ कहे
जी जाती है अपना पूरा जीवन...
Bhawna
1 जुलाई 2011
एक फूल की आत्मकथा...
एक फूल
जो हमेशा बनाए रखता था
एक घेरा अपने चारों ओर
उदासी का घेरा...
फिर न जाने कहाँ से एक माली आया
और करने लगा देखभाल...
फूल सकुचाता रहा
मगर माली के प्यार
उसके दुलार
उसके अपनेपन के आगे
फूल ने भी कर दिया आत्मसमर्पण ...
तोड़ डाला वो उदासी का घेरा
लगा मुस्कराने, खिलखिलाने
जीवन जीने की ललक,
साँसे लेने का साहस,
न जाने उसमें कैसे आ गया !
अब चारों तरफ
प्यार,दुलार,अपनापन पाकर
जी उठा फिर से...
पर ये क्या!
अचानक क्या हुआ इस माली को...
एक ही झटके में
ऊखाड़ डाला जड़ से...
पर मासूम फूल उदास नहीं हुआ
मुस्कराता रहा...
बस यही सोचकर
कि कुछ समय के लिए ही सही
उसने भी पाया था अपनापन,प्यार,दुलार...
पर नहीं समझ पाया
इतने बड़े बदलाव का कारण
क्या ये माली की अपनी सोच थी
या फिर वो भटक गया था
किसी की बातों से...
जो सोच भी नहीं सका
साथ बिताए वो खूबसूरत पल
क्या कभी याद नहीं आयेगा
उस फूल का मासूम चेहरा?
और क्या अब कोई फूल
किसी माली को देखकर
तोड़ पायेगा अपनी उदासी का घेरा
पैदा कर पायेगा अपने अन्दर
जीने की चाह
शायद नहीं
क्योंकि उदासी के बाद
मिलने वाला प्यार
कभी कोई कहाँ भूल पाता है
हाँ मर जरूर जाता है जीते जी
और छोड़ देता है साँसे
मंद-मंद मुस्कराते हुए
अपने माली के लिए...
Bhawna
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