झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता
लहरों में उठते
तूफानों से बेखबर
अपनी हसीन
दुनिया में व्यस्त
इक दूजे को
पूर्ण समर्पित।
मैं रोज सुबह उठता
अखबार पढ़ता
और इसी झील के किनारे आता।
उन सायों से
मेरा एक रिश्ता
बहुत घनिष्ट रिश्ता
बन गया।
बन गये वो भी
मेरी जिंदगी के अहं हिस्से।
रोजमर्रा की तरह
आज भी उठा
अखबार पर नजर दौडाई
पर हटा न सका
दहल गया खबर पढ़कर
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता
लहरों में उठते
तूफानों से बेखबर
अपनी हसीन
दुनिया में व्यस्त
इक दूजे को
पूर्ण समर्पित।
मैं रोज सुबह उठता
अखबार पढ़ता
और इसी झील के किनारे आता।
उन सायों से
मेरा एक रिश्ता
बहुत घनिष्ट रिश्ता
बन गया।
बन गये वो भी
मेरी जिंदगी के अहं हिस्से।
रोजमर्रा की तरह
आज भी उठा
अखबार पर नजर दौडाई
पर हटा न सका
दहल गया खबर पढ़कर
झील में जोरों का तूफान जो आया था
बेतहाशा दौडा
झील के किनारे
पर वो किनारा
अब तहस-नहस हो चुका था
बर्बादी का आलम था
और
और वो दोनों साये
एक दूजे का हाथ थामें
खामोश पडे थे
जैसे कि रात और दिन
सदियों बाद मिलें हों
ऐसी खामोशी
जो अब कभी नहीं टूटेगी।
मैं बुत बना देखता रहा
सोचता जाता
कौन थे?
कहाँ से आते थे?
नहीं जान पाया इस रहस्य को
हाँ जाना बस इतना
निभाया साथ दोनों ने
आखिरी साँस तक
जो अब नहीं
निभाता कोई।
बेतहाशा दौडा
झील के किनारे
पर वो किनारा
अब तहस-नहस हो चुका था
बर्बादी का आलम था
और
और वो दोनों साये
एक दूजे का हाथ थामें
खामोश पडे थे
जैसे कि रात और दिन
सदियों बाद मिलें हों
ऐसी खामोशी
जो अब कभी नहीं टूटेगी।
मैं बुत बना देखता रहा
सोचता जाता
कौन थे?
कहाँ से आते थे?
नहीं जान पाया इस रहस्य को
हाँ जाना बस इतना
निभाया साथ दोनों ने
आखिरी साँस तक
जो अब नहीं
निभाता कोई।
डॉ० भावना