20 मार्च 2011
8 मार्च 2011
पहरे...
तीन महीने का लम्बा सफ़र जो लम्बा लगा नहीं ना जाने कैसे गुजर गए ये ३ महीने इसे ही कहते हैं अपनों का साथ जी हाँ भारत यात्रा पूरी हुई बहुत सारी खट्टी मिट्ठी यादों को समेटे हमारी वापसी १४ फरवरी वेंलनटाईन डे वाले दिन हो गई अब यहाँ की इतनी व्यस्तता की आज किसी तरह समय चुराया है फिर से अपने लेखकों, पाठकों के बीच में आने का कुछ लिखा है इस तरह गौर फरमाईगा ...
मेरी आँखों पर
इतने पहरे ...
पहले तो न थे ...
देख सकती थी मैं भी...
खूबसूरत ख्वाब ...
पर अचानक क्या हुआ?
जो निकाल ली गई
इनकी रोशनी ...
और अब तो ये
रो भी नहीं सकती ...
भावना
मेरी आँखों पर
इतने पहरे ...
पहले तो न थे ...
देख सकती थी मैं भी...
खूबसूरत ख्वाब ...
पर अचानक क्या हुआ?
जो निकाल ली गई
इनकी रोशनी ...
और अब तो ये
रो भी नहीं सकती ...
भावना
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