आज रक्षाबन्धन है सभी इस पर्व पर खुशियाँ मना रहे होंगे, मनानी भी चाहिए, लेकिन कुछ दिल ऐसे भी हैं जो आज़ बहुत उदास भी हैं जिनमें मेरे पापा भी हैं उनकी दो बहनें थी दोनों ही उनका साथ छोड़ गई, बहुत याद करते हैं पापा उनको, पर यही तो दुनिया है दुख-सुख साथ-साथ चलते है। कुछ भाई अपनी बहनों से दूर परदेस में हैं, उनमें मेरा परिवार भी है जो यहाँ इतनी दूर है, इस पर्व पर उनका याद आना स्वाभिक भी है, माँ भी हर त्यौहार पर अपने बेटे का रास्ता देखती है, इसी को थोड़ा सा हाइकु के माध्यम से मैंने और रामेश्वर जी ने कहने का प्रयास किया है, शायद पंसद आए, अगर आए तो हौसला जरूर बढाइये।
बहुत-बहुत आभार
इस पर्व की बहुत सारी शुभकामनाएँ
नेह की गली
मन में खिली अब
आस की कली । R
आस की कली
ना मुरझाये कभी
ना, सूनी गली। B
नेह तुम्हारा
तोड़ बँधन सब
खींच ही लाया । B
न टूटे कभी
आशाओं की कलियाँ
आरज़ू यही । B
तुमको देखा
मिट गई मन से
चिन्ता की रेखा । R
परदेस में
जब याद तू आई
बड़ा रुलाई । B
चिन्ता ने तुम्हें
बना दिया बीमार
मेरे कारण। B
जाँऊगा नहीं
छोड़कर आँचल
माँ तेरा कभी। B
Bhawna
24 अगस्त 2010
11 अगस्त 2010
हो गए पूरे ४ साल...आइये केक कर रहा है इंतज़ार...
केक आप सबके लिए...
अपना ही केक है, अपने घर में, चिन्ता मत कीजिए नुकसान नहीं देगा...
९ अगस्त २००६ का वो दिन था जब मैंने अपनी पहली पोस्ट डाली थी यानि की मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था, अब ९ अगस्त को पूरे ४ साल हो गए,पता नहीं कितनी सफलता मिली, पर हॉ एक बड़ा परिवार मिला, मित्र मिले, उनका अथाह स्नेह मिला बस जिंदगी में सबकुछ मिल गया.
आज़ ११ तारीख हो गई लिखना तो ९ को ही चाहती थी, पर व्यस्तता ने हाथों में हथकडियाँ जो डाल दी थी। आप सबके बिना सेलिब्रेशन भी कैसा? अब तो देश भी बदल गया अब युगांडा ने आस्ट्रेलिया की जगह जो ले ली और यहाँ आये भी १ साल कैसे बीत गया पता नहीं चला। आप लोगों का स्नेह यूँ ही बना रहा तो कुछ न कुछ नया तो लेखन में आता ही रहेगा। अभी तो दो ही पुस्तक निकली हैं आगे जल्दी ही २ पुस्तक प्रकाशित करने का प्लान है देखिए कब तक सफलता मिलती है।
मैं और मेरी छोटी बेटी ऐश इंडियन रेस्टोरेंट में गए थे खाना खाने ....उसके बाहर का फोटो.... सूरज की किरणों ने हमारा कैसा श्रृंगार किया है देखिए..... है ना कमाल......
भावना
9 अगस्त 2010
दो मुँह वाला कछुआ...
अरे ये दो मुँह वाला कछुआ तो बहुत ही प्यारा है देखो तो कितने सारे लोगों की निगाहें इसको कितने प्यार से निहार रहीं हैं काश !मैंने भी इसे देखा होता यही मलाल हो रहा है ...
अरे क्या देख रहे हो भाई मैंने मुंह साफ किया है ...
बहुत थक गया हूँ ...आराम करना चाहता हूँ ...चलिए इन महाशय का हाथ ही सही ...
बड़े प्यार से लिटाये हैं ...
चलना होगा ...दूसरे बच्चों से भी तो मिलना है ना...
अरे !ये तो बहुत स्वाद है ...
Bhawna
अरे क्या देख रहे हो भाई मैंने मुंह साफ किया है ...
बहुत थक गया हूँ ...आराम करना चाहता हूँ ...चलिए इन महाशय का हाथ ही सही ...
बड़े प्यार से लिटाये हैं ...
चलना होगा ...दूसरे बच्चों से भी तो मिलना है ना...
बहुत तेज भूख लगी है ...आज पत्ते से ही काम चलता हूँ ...
अरे !ये तो बहुत स्वाद है ...
अरे रुको फोटो ले रहे हो
तो जरा पोज तो बनाने दो ...
Bhawna
3 अगस्त 2010
अनुभूति में...
कमल पर कुछ हाइकु अनुभूति में भी प्रकाशित हुए हैं पढ़कर प्रतिक्रिया दीजिएगा आपकी प्रतिक्रिया ही हौसला बढ़ाती है।
http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/kamal/bhawna_kunwar.htm
२-
४-
भावना
http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/kamal/bhawna_kunwar.htm
१-
देखी चाँदनी
आँचल सँवारती
२-
खुश तालाब
कमलों की बारात
सच या ख्वाब।
३-
सुबके झील
दिलासा देता हुआ
४-
बार-२ नहाए
शैतान सा कमल
झील शर्माए।
५-
कमल पर
बिखरे पड़े हीरे
भावना
सदस्यता लें
संदेश (Atom)