27 मार्च 2013
4 मार्च 2013
सुहाने दिन
याद आ रहे
पापा बहुत आप।
आपका प्यार
अपना परिवार।
सुहाने दिन
बिताए संग मिल।
चिन्ता न फिक्र।
आपकी स्नेही छाया।
माँ से भी खूब
था ममता को पाया
हाथ पकड़
स्कूल संग ले जाना
बस्ता उठाना।
थक जाने पर यूँ
माँ का पैर दबाना।
बड़े ज्यूँ हुए
भर गई मन में
पीर ही पीर
कहना चाहूँ
पर कह ना पाऊँ
भीगा है मन
फिर ढूँढने चली
घर का कोना
छिपा दूँ जिसमें
आँसू की धारा
हर तरफ मिली
सीली दीवारें ,
सहमें- से सपने।
डर के मारे
पुकारती हूँ पापा-
जल्दी से आओ
अनकही -सी व्यथा
सुनते जाओ
यूँ दोबारा हिम्मत
जुटा न पाऊँ
दम सा तोड़ गई
गले में मेरे
दर्द -भरी आवाज़
अधूरी रही आस।
Bhawna
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