25 अक्तूबर 2006

बस तुम यादें छोड गयीं



मैं और तुम खेला करते

गलियों में,चौबारों में

आँगन में चौपालों में।

मैं और तुम झूला करते

सावन के आने पर

पेडों की डालों पर।

मैं और तुम ब्याह रचाते थे

गुड्डे और गुडियों का

सब कुछ होता कहानी की परियों सा।

मैं और तुम रूठा करते

पर खुद ही मन जाते

फिर इक दूजे से दूर ना जाते।

आज अचानक हुआ है क्या?

जो तुम मुझसे रूठ गयी

गलियाँ,चौबारे,आँगन,चौपालें

सब कुछ यूँ ही छोड गयीं।

सूने हो गये झूले सब,

पेडों की डाली सिसक रही

बाट जोह रहे गुड्डे गुडिया

क्यूँ तुम मुँह अब मोड गयी?

मात - पिता जब छूटे थे-

तब तुमने मुझे संभाला था

आज तुम मुझसे छूट गयी

अब मुझको कौन संभालेगा?

सूनी हो गयी मेरी कलाई

अब रखिया कौन बांधेगा?

कौन कहेगा मुझको भैय्या?

अब कौन मुझे दुलारेगा?

कैसे हो गयी निष्ठुर तुम?

साथ जो मेरा छोड गयी

यहाँ वहाँ मैं ढूँढू तुमको

बस तुम यादें छोड गयीं

बस तुम यादें छोड गयीं।
डॉ० भावना कुँअर

4 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

आज उन्हीं यादों के पल को
एक धरोहर बना लिया
जब जब एकाकीपन छाया
उनको साथी बना लिया.

खूबसूरत भाव हैं भावनाजी

बेनामी ने कहा…

bhai bahan ke kavita bhi sunder ha itne sal sath rahker aachanak bichud jana dil ko dard deta hei.

NARENDER PUROHIT

बेनामी ने कहा…

भावना जी

बहुत हृदय स्पर्शी रचना है, आँखें भिगो गई.

समीर लाल

बेनामी ने कहा…

समीर जी, राकेश जी, नरेन्द्र जी हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया। आपका कथन बिल्कुल सही है।

डॉ० भावना