29 अक्तूबर 2006

नन्हें पाँव

१४ नवम्बर पर आने वाले बाल दिवस पर मेरी एक रचना



हाथ पकडकर अनुज को अपने जो चलना सिखलाते हैं
वही आदमी जग में सच्चे दिग्दर्शक कहलातें हैं।

ठोकर लगने पर भी कोई हाथ बढाता नहीं यहाँ
सोचा था नन्हें बच्चों के पाँव सभी सहलाते हैं।

नन्हें बोल फूटते मुख से तो अमृत से लगते हैं
मगर तोतली बोली का भी लोग मखौल उडाते हैं।

खुद तो लेकर भाव और के बात सदा ही कहते हैं
ऐसा करने से वो खुद को भावहीन दर्शाते हैं।

हैं कुछ ऐसे उम्र से ज्यादा भी अनुभव पा जाते हैं
और हैं कुछ जो उम्र तो पाते अनुभव न ला पाते हैं।
डॉ० भावना कुअँर

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुंदर भाव और पंक्तियां हैं, भावना जी. बधाई.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

शुक्रिया समीर जी कि मेरे भाव आप तक पहुँचे

Laxmi ने कहा…

सुन्दर कविता है, भावना जी। बधाई। क्या आपको पता है कि आपकी प्रोफाइल में आपकी उम्र 249 साल लिखी है!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Laxmi ji
Sukriya.truti ke bare men aagaha karane ke liye dhanyvad. varna to maine to sab ricord tod dale the varna jinda rahne ke liye.