28 मई 2018

बस यादें

आज बहुत दिनों बात ब्लॉग पर आना हुआ पर अब कोशिश रहेगी कि निरन्तर आती रहूँ आप सबका पहले की तरह ही स्नेह मिलेगा इस आशा से फिर से एक बार नई शुरुआत करती हूँ,पढियेगा मेरा संस्मरण उदन्ती में...

http://www.udanti.com/2018/05/blog-post_96.html







































Bhawna

27 जून 2017

दुःखों की बस्ती

3- दुःखों की बस्ती


दुःखों की बस्तियों में तो, बस आँसू का बसेरा है
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है।

वो देखो जी रहें हैं यूँ, न रोटी है न कपड़ा है
उन्हें मायूसियों के फिर, घने जंगल ने घेरा है।

नहीं रुख्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोड़ा है
ये आँखे राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है।

नजर आती नहीं कोई, किरण उम्मीद की उनको
मगर सेठों के घर में तो, सवेरा ही सवेरा है।

मिले कोई तो अब उनको, जो समझे हाले दिल उनका
छेड़ो ये तराना तुम, ये मेरा है ये मेरा है।

Bhawna

9 जून 2017

लिक्खी है पाती

2- लिक्खी है पाती
 
अब ये दुनिया नहीं है भाती
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

बढ़ी बहुत बेचैनी मन में,
फैल रही नफरत जन-जन में
नही नींद भी अब आ पाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

Bhawna

3 जून 2017

ज़रा रोशनी मैं लाऊँ

1-ज़रा रोशनी मैं लाऊँ 

छाया घना अँधेरा
ज़रा रोशनी मैं लाऊँ 
ये सोचकर कलम को
मैंने उठा लिया है...
घूमें गली-गली में 
नर-वहशी और दरिंदे
तड़पें शिकार होकर
घायल पड़े परिंदे
उनके कटे परों पर
मरहम लगा दिया है।
ये सोचकर कलम को
मैने उठा लिया है...
सजदे में झुकते सर भी
रहते कहाँ सलामत
पूजा के स्थलों में 
आ जाये कब क़यामत 
नफरत पे प्रेम का रंग
थोड़ा चढ़ा दिया है।
ये सोचकर कलम को
मैने उठा लिया है...                       
ढूँढें डगर कहाँ जब
क़ानून ही है अंधा
मर्ज़ी से इसको बदलें
नेताओं का है धंधा
आँखों में आस का अब
दीपक जला दिया है।
ये सोचकर कलम को
मैने उठा लिया है... 
"अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त"
Bhawna

29 फ़रवरी 2016

किस्मत

कुछ ऐसे हालात बने कि मेरा ब्लॉग मुझे पुकारता रहा और मैं उसकी पुकार सुनकर भी उस तक ना आ सकी किस्मत ने कुछ ऐसा पटका दिया कि अब तक नहीं सँभल पाई दुःख तो बहुत है पर जहाँ अपनी नहीं चलती वहाँ क्या किया जाए-

रूठ जाती है किस्मत कभी 
तो कभी साथी छोड़ देता है साथ
 खिलाए थे जो रंग-बिरंगे फूल संग-संग हमने
खो जाती है उनकी खुशबू कहीं
और हम मन को मजबूती से पकड़े
समेटने की नाकामयाब कोशिश 
करते रह जाते हैं आखिरी साँस के साथ...

2016 में "हम लोग" पत्रिका में पेज न० 61पर मेरे कुछ माहिया प्रकाशित हुए हैं लिंक है-

file:///C:/Users/Bhawna/Downloads/humlog%202016%20final%20new.pdf


Bhawna

29 अगस्त 2015

राखियाँ घर नहीं आईं"


"राखियाँ घर नहीं आईं"

सदा की तरह राखियों से
बाज़ार सजा होता,
कलाई सजे भाई की
ख़्वाब बहन का होता।
छोटे थे हम
प्यारा हमारा भाई
जाने फिर भी क्यूँ
सूनी रहती उसकी कलाई,
डबडबाई आँखों में
हजारों सवाल तैरते
जवाब भी मिलता
पर समझ नहीं आता।
दिखती बहना रोती कहीं
भाई बिना सूनी भई।
कहीं भाई उदास होता
बहना उसके है नहीं।
पर हम तो हैं, दो छोटी बहनें,
बड़ा है, प्यारा सा एक भाई,
जाने क्यूँ फिर घर हमारे
राखियाँ ही नहीं आईं?
आँसुओं से,लबालब आँखे
एकदूसरे को निहारती,
दुःख से हम बिलख ही पड़ते,
फिर तीनों गले लगते
रोते-रोते सो जाते
दर्द भरे सपनों में खो जाते।
आज बड़े हो गए
समझ भी अब सयानी हो गई
"आन पड़ी है"
कहानी ये पुरानी हो गई
भाई की लम्बी उम्र की कामना
आज भी हर साँस करती है।
पर आज भी तिरती है आँखों में,
राखियों से सजी थाली
पर बात अब भी वही
पुरानी रूढ़ी, परम्परा वाली।
अब तो परदेस में बसी हूँ,
पर पुराने रिवाज़ों में अब भी फँसी हूँ।
भाई की सूनी कलाई,
आज भी सीने में खटकती है।
आज भी आँखों में, वो नमी
बेरोक-टोक विचरती है,
और सदा की भाँति "राखी"
आज भी तो बस हमारे
दिल ही में सँवरती है।

डॉ० भावना कुँअर















Bhawna

11 मई 2015

"मीठी यादों के कुएँ"











साथ रखना
मीठी यादों के कुएँ
छोड़े अपने
जहर बुझे बाण
खाली न हो उनकी
जब कमान
एक लोटा याद ले
तू छिड़कना।
अँधेरी रात जब
गम से घिरे
अपनापन जब
कम सा लगे
यादों के जुगनू को
हथेली में ले
मन अटरिया पे
हौले रखते
जरा न झिझकना।
सुहानी भोर
जब चुभने लगे
ओस मोती भी
जब हरने लगें
एक प्याली में
चाय संग घुली वो
मीठी सी याद,
हरी घास पे पड़े
झूले का साथ,
धीरे से निकाल तू
एक नई सी
दुनिया बुन लेना।
मीठे सपने
घुटन सीने में ज्यूँ
भरने लगें,
पलकों से दर्द ज्यूँ
झरने लगे,
मधुर मिलन की
बीती रात की
सुनहरी सी याद
हौले निकाल
तू पलकों के पास
मोती समझ
बिना किसी हिचक
चुपके भर लेना।

Bhawna

30 दिसंबर 2014

शुभकामनाएँ










सभी मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की शुभकामनाएँ-

दुआ करती
न रहे तन्हाँ कोई
नववर्ष में।


Bhawna

11 जुलाई 2014

मधुर मिलन



समय द्वैमासिक के जुलाई अगस्त  2014 के विशेषांक के साथ कई महीनों के बाद फिर अपने ब्लॉग पर लौटना !कुछ अनुभूतियाँ  !!
 डॉ० भावना कुँअर


15 मार्च 2014

कुछ पुरानी यादें ....

होली खेले तो बरसों हो गये पर कुछ पुरानी यादें हैं जो आज मन कर आया कि आप सबके साथ ताजा कर ली जायें,एक जमाना था जब रंग कुछ उन्माद सा भर देते थे, पर अब ना तो वैसा माहौल ही रहा ना  वो खुशबू देने वाले साफ-सुथरे रंग, ऊपर से अपनी मिट्टी से दूरी भी होली ना खेलने का एक बड़ा कारण बनी, हाँ लेखन जरूर चलता रहा।
आप सभी को हमारे पूरे कुँअर परिवार की ओर से होली की हार्दिक बधाई,खेलिएगा जरूर अगर होली खेलना पसन्द है तो पर ध्यान भी रखियेगा कि ये त्यौहार स्नेह मिलन का त्यौहार है-

कपोलों पर
खिलते थे कभी यूँ
कई रंग हमारे
आज जीते हैं
एहसासों में छिपे
परछाईं से कहीं।






























































Bhawna

26 जनवरी 2014

फूलों जैसा मेरा देश,वतन से दूर


गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ अपनी दो पुरानी रचनायें आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूँगी...












फूलों जैसा मेरा देश

फूलों जैसा मेरा देश मुरझाने लगा
शत्रुओं के पंजों में जकडा जाने लगा
रात-दिन मेरी आँखों में एक ही ख्वाब
कैसे हो मेरा 'प्यारा देश' आजाद
कैसे छुडाऊँ इन जंजीरों की पकड से इसको
कैसे लौटाऊँ वापस वही मुस्कान इसको
कैसे रोकूँ आँसुओं के सैलाब को इसके
कैसे खोलूँ आजादी के द्वार को इसके
कैसे करूँ कम आत्मा की तड़प रूह की बेचैनी को
चढ़ जाऊँ फाँसी मगर दिलाऊँगा आजादी इसको
ये जन्म कम है तो, अगले जन्म में आऊँगा
पर देश को मुक्ति जरूर दिलाऊँगा। 
जो सोचा था कर दिखलाया
भले ही उसको फाँसीं चढ़वाया
शहीद भगत सिंह नाम कमाया
आज भी सब के दिल में समाया।


वतन से दूर

वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बसती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती।


बसी है अब भी साँसों में
वो सौंधी गंध धरती की
मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में
दुआ रब से यही करती।


बड़े ही वीर थे वो जन
जिन्होंने झूल फाँसी पर
दिला दी हमको आजादी।
नमन शत-शत उन्हें करती।

Bhawna

13 जनवरी 2014

सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगन्धा मासिक अक्तुबर –नवम्बर 2013 में मेरे कुछ हाइकु प्रकाशित...











































Bhawna