१४ नवम्बर पर आने वाले बाल दिवस पर मेरी एक रचना
हाथ पकडकर अनुज को अपने जो चलना सिखलाते हैं
वही आदमी जग में सच्चे दिग्दर्शक कहलातें हैं।
ठोकर लगने पर भी कोई हाथ बढाता नहीं यहाँ
सोचा था नन्हें बच्चों के पाँव सभी सहलाते हैं।
नन्हें बोल फूटते मुख से तो अमृत से लगते हैं
मगर तोतली बोली का भी लोग मखौल उडाते हैं।
खुद तो लेकर भाव और के बात सदा ही कहते हैं
ऐसा करने से वो खुद को भावहीन दर्शाते हैं।
हैं कुछ ऐसे उम्र से ज्यादा भी अनुभव पा जाते हैं
और हैं कुछ जो उम्र तो पाते अनुभव न ला पाते हैं।
डॉ० भावना कुअँर
4 टिप्पणियां:
सुंदर भाव और पंक्तियां हैं, भावना जी. बधाई.
शुक्रिया समीर जी कि मेरे भाव आप तक पहुँचे
सुन्दर कविता है, भावना जी। बधाई। क्या आपको पता है कि आपकी प्रोफाइल में आपकी उम्र 249 साल लिखी है!
Laxmi ji
Sukriya.truti ke bare men aagaha karane ke liye dhanyvad. varna to maine to sab ricord tod dale the varna jinda rahne ke liye.
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